जो अगर ध्यान और मनुष्य मष्तिषकमे बैठे स्वयं ईश्वरको ईश्वर अंश अविनाशी मरने वाला यंत्र रुप शरीरधारी जीव समर्पित हो जाए पहले और फिर कायदे कानुन की बात करे तो समर्थ होयसो बोले की भाषा नीकलती है तो जीवनमे अलौकिक आनंद से भावविभोर व्यक्ति जीवन जीनेके लिए सदा उत्साहित रहता है।धन्यवाद।
जो अगर ध्यान और मनुष्य मष्तिषकमे बैठे स्वयं ईश्वरको ईश्वर अंश अविनाशी मरने वाला यंत्र रुप शरीरधारी जीव समर्पित हो जाए पहले और फिर कायदे कानुन की बात करे तो समर्थ होयसो बोले की भाषा नीकलती है तो जीवनमे अलौकिक आनंद से भावविभोर व्यक्ति जीवन जीनेके लिए सदा उत्साहित रहता है।धन्यवाद।
ईश्वर प्राप्ति एक लक्ष्य के लिए मनुष्यको संसारसे नहि संसार सागरमे तैरने के लिए भागना पडेगा संगर्ष तो होते ही पर ध्यान परमात्मामे सदैव लगा रहे इसलिए सांसो को रोक रोक कर प्राणोको मस्तिष्कमें रखना पडेगा जो ईश्वर समर्पणकी अवस्था है। नहितो जो कबीरदास कहे गये है मन मरे माया मरे मर मर जाएं शरीर पर आशा तृष्णा ना मरे जो जरुरी भी है क्योंकी अगर इस जन्म मे सांसोको रोककर प्राणों को मस्तीष्क में न बिठा पाएं तो कमसे कम एसी आशा जरूर रखना के एक बार एसी अवस्था जरुर होगी जहा मै ईश्वरमें होगा और पूरा संसार ईश्वर चलायमान दिखेगा जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण जो मेरे अंतर छाति और पीछेकी तरफ की पिठ बल है जीसे "हित" ह्रदय में और "कारी" पिठमें कुंडलीनी जाग्रत अवस्था है।
जो अगर ध्यान और मनुष्य मष्तिषकमे बैठे स्वयं ईश्वरको ईश्वर अंश अविनाशी मरने वाला यंत्र रुप शरीरधारी जीव समर्पित हो जाए पहले और फिर कायदे कानुन की बात करे तो समर्थ होयसो बोले की भाषा नीकलती है तो जीवनमे अलौकिक आनंद से भावविभोर व्यक्ति जीवन जीनेके लिए सदा उत्साहित रहता है।धन्यवाद।
ReplyDeleteजो अगर ध्यान और मनुष्य मष्तिषकमे बैठे स्वयं ईश्वरको ईश्वर अंश अविनाशी मरने वाला यंत्र रुप शरीरधारी जीव समर्पित हो जाए पहले और फिर कायदे कानुन की बात करे तो समर्थ होयसो बोले की भाषा नीकलती है तो जीवनमे अलौकिक आनंद से भावविभोर व्यक्ति जीवन जीनेके लिए सदा उत्साहित रहता है।धन्यवाद।
ReplyDeleteईश्वर प्राप्ति एक लक्ष्य के लिए मनुष्यको संसारसे नहि संसार सागरमे तैरने के लिए भागना पडेगा संगर्ष तो होते ही पर ध्यान परमात्मामे सदैव लगा रहे इसलिए सांसो को रोक रोक कर प्राणोको मस्तिष्कमें रखना पडेगा जो ईश्वर समर्पणकी अवस्था है। नहितो जो कबीरदास कहे गये है मन मरे माया मरे मर मर जाएं शरीर पर आशा तृष्णा ना मरे जो जरुरी भी है क्योंकी अगर इस जन्म मे सांसोको रोककर प्राणों को मस्तीष्क में न बिठा पाएं तो कमसे कम एसी आशा जरूर रखना के एक बार एसी अवस्था जरुर होगी जहा मै ईश्वरमें होगा और पूरा संसार ईश्वर चलायमान दिखेगा जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण जो मेरे अंतर छाति और पीछेकी तरफ की पिठ बल है जीसे "हित" ह्रदय में और "कारी" पिठमें कुंडलीनी जाग्रत अवस्था है।
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